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विजया एकादशी व्रत कथा | विजया एकादशी की पौराणिक कथायें

DeepakDeepak

विजया एकादशी कथा

विजया एकादशी व्रत कथा

एकादशियों का माहात्म्य सुनने में अर्जुन को अपार हर्ष की अनुभूति हो रही थी। जया एकादशी की कथा का श्रवण रस पाने के बाद अर्जुन ने कहा- "हे पुण्डरीकाक्ष! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसके व्रत का क्या विधान है? कृपा करके मुझे इसके सम्बन्ध में भी विस्तारपूर्वक बतायें।"

श्रीकृष्ण ने कहा- "हे अर्जुन! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजयश्री मिलती है। इस विजया एकादशी के माहात्म्य के श्रवण एवं वाचन से सभी पापों का अन्त हो जाता है।"

एक बार देवर्षि नारद ने जगत पिता ब्रह्माजी से कहा- "हे ब्रह्माजी! आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का व्रत तथा उसकी विधि बताने की कृपा करें।"

नारद की बात सुन ब्रह्माजी ने कहा- "हे पुत्र! विजया एकादशी का उपवास पूर्व के पाप तथा वर्तमान के पापों को नष्ट करने वाला है। इस एकादशी का विधान मैंने आज तक किसी से नहीं कहा परन्तु तुम्हें बताता हूँ, विजया नाम की यह एकादशी उपवास करने वाले सभी मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।"

अब श्रद्धापूर्वक कथा का श्रवण करो- श्रीराम को जब चौदह वर्ष का वनवास मिला, तब वह अपने भ्राता लक्ष्मण तथा भार्या देवी सीता सहित पञ्चवटी में निवास करने लगे। उस समय महापापी रावण ने माता सीता का हरण कर लिया।

इस दुःखद घटना से श्रीराम जी तथा लक्ष्मण जी अत्यन्त दुखी हुये और सीता जी की खोज में वन-वन भटकने लगे। वन में भटकते हुये, वे मरणासन्न जटायु के पास जा पहुँचे। जटायु ने उन्हें माता सीता के हरण का पूरा वृत्तान्त सुनाया और भगवान श्रीरामजी की गोद में प्राण त्यागकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। कुछ आगे चलकर श्रीराम व लक्ष्मण की सुग्रीव जी के साथ मित्रता हो गयी और वहाँ उन्होंने बालि का वध किया।

श्रीराम भक्त हनुमान जी ने लङ्का में जाकर माता सीता का पता लगाया और माता से श्रीराम जी तथा महाराज सुग्रीव की मित्रता का वर्णन सुनाया। वहाँ से लौटकर हनुमान जी श्रीरामचन्द्र जी के पास आये और अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट का सारा वृत्तान्त कह सुनाया।

सब हाल जानने के बाद श्रीरामचन्द्र जी ने सुग्रीव की सहमति से वानरों तथा भालुओं की सेना सहित लङ्का की तरफ प्रस्थान किया। समुद्र किनारे पहुँचने पर श्रीरामजी ने विशाल समुद्र को घड़ियालों से भरा देखकर लक्ष्मण जी से कहा- "हे लक्ष्मण! अनेक मगरमच्छों और जीवों से भरे इस विशाल समुद्र को कैसे पार करेंगे?"

प्रभु श्रीराम की बात सुनकर लक्ष्मणजी ने कहा- "भ्राताश्री! आप पुराण पुरुषोत्तम आदिपुरुष हैं। आपसे कुछ भी अदृश्य नहीं है। यहाँ से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में वकदाल्भ्य मुनि का आश्रम है। वह अनेक नाम के ब्रह्माओं के ज्ञाता हैं। वह ही आपकी विजय के उपाय बता सकते हैं।"

अपने छोटे भाई लक्ष्मणजी के वचनों को सुन श्रीरामजी वकदाल्भ्य ऋषि के आश्रम में गये और उन्हें प्रणाम कर एक ओर बैठ गये।

अपने आश्रम में श्रीराम को आया देख महर्षि वकदाल्भ्य ने पूछा- "हे श्रीराम! आपने किस प्रयोजन से मेरी कुटिया को पवित्र किया है, कृपा कर अपना प्रयोजन कहें प्रभु!"

मुनि के मधुर वचनों को सुन श्रीरामजी ने कहा- "हे ऋषिवर! मैं सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसराज रावण को जीतने की इच्छा से लङ्का जा रहा हूँ। कृपा कर आप समुद्र को पार करने का कोई उपाय बतायें। आपके पास आने का मेरा यही प्रयोजन है।"

महर्षि वकदाल्भ्य ने कहा- "हे राम! मैं आपको एक अति उत्तम व्रत बतलाता हूँ। जिसके करने से आपको विजयश्री अवश्य ही प्राप्त होगी।"

"यह कैसा व्रत है मुनिश्रेष्ठ! जिसे करने से समस्त क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है?" जिज्ञासु हो श्रीराम ने पूछा। इस पर महर्षि वकदाल्भ्य ने कहा- "हे श्रीराम! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का उपवास करने से आप अवश्य ही समुद्र को पार कर लेंगे और युद्ध में भी आपकी विजय होगी। हे मर्यादा पुरुषोत्तम! इस उपवास के लिये दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताम्बे या मिट्टी का एक कलश बनायें। उस कलश को जल से भरकर तथा उस पर पञ्च पल्लव रखकर उसे वेदिका पर स्थापित करें। उस कलश के नीचे सतनजा अर्थात मिले हुये सात अनाज और ऊपर जौ रखें। उस पर भगवान विष्णु की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान श्रीहरि का पूजन करें। वह सारा दिन भक्तिपूर्वक कलश के सामने व्यतीत करें और रात को भी उसी तरह बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे स्नान आदि से निवृत्त होकर वह कलश ब्राह्मण को दे दें। हे दशरथनन्दन! यदि आप इस व्रत को सेनापतियों के साथ करेंगे तो अवश्य ही विजयश्री आपका वरण करेगी।" मुनि के वचन सुन तब श्रीरामचन्द्रजी ने विधिपूर्वक विजया एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से राक्षसों के ऊपर विजय प्राप्त की।

"हे अर्जुन! जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान के साथ पूर्ण करेगा, उसकी दोनों लोकों में विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था- जो इस व्रत का माहात्म्य श्रवण करता है या पढ़ता है उसे वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।"

कथा-सार

भगवान विष्णु का किसी भी रूप में पूजन मानव मात्र की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करता है। हालाँकि श्रीराम स्वयं विष्णु के अवतार थे, अपितु अपनी लीलाओं के चलते प्राणियों को सद्मार्ग दिखाने के लिये उन्होंने विष्णु भगवान के निमित्त इस व्रत को किया। विजय की इच्छा रखने वाला इस उपवास को करके अनन्त फल का भागी बन सकता है।

Kalash
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द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
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