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एकादशी व्रत के अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | एकादशी व्रत समय के विषय में

DeepakDeepak

एकादशी व्रत समय के विषय में

एकादशी व्रत के अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

वर्षों से हमें एकादशी व्रत से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्न दुनिया भर से मिलते आ रहे हैं। हालाँकि, धार्मिक हिन्दु परिवार में जन्म लेने वाले किसी व्यक्ति को चाहे यह प्रश्न बहुत ही सामान्य प्रतीत हो, लेकिन भगवान विष्णु के कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो द्रिक पञ्चाङ्ग पर दिये गये एकादशी व्रत की तिथि व समय को लेकर प्रायः भ्रमित हो जाते हैं।

1. एकादशी तिथि प्रारम्भ एवं एकादशी तिथि समाप्त से क्या अभिप्राय है?

यह पञ्चाङ्ग में दी गयी तिथि के समय है (ठीक उसी प्रकार जैसे रविवार, सोमवार आदि दिन मध्यरात्रि से शुरू होते हैं और अगली मध्यरात्रि को समाप्त होते हैं) और एकादशी व्रत के लिये सही दिनाँक की गणना करने में सहायक होते हैं। क्यूँकि एकादशी तिथि दिन के किसी भी समय प्रारम्भ हो सकती है और अधिकांशतः दो दिनों में विभाजित होती है, अतः तिथि के समय के आधार पर यह तय किया जाता है कि कौन से दिन एकादशी व्रत का पालन किया जाना चाहिये। व्रत के लिये सही दिनाँक की गणना के उपरान्त तिथि के समय की आवश्यकता नहीं रह जाती है तथा हम इसे सिर्फ एक सामान्य जानकारी के तौर पर उपलब्ध कराते हैं। व्रत का पालन करने के लिये तिथि के समय की आवश्यकता नहीं होती है।

2. क्या मुझे एकादशी तिथि के प्रारम्भ होने पर व्रत का पालन शुरू करना चाहिये?

नहीं। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, एकादशी व्रत के लिये तिथि के प्रारम्भ समय की आवश्यकता नहीं होती है। एकादशी का व्रत हमेशा सूर्योदय पर प्रारम्भ होता है और अधिकांशतः अगले दिन सूर्योदय के पश्चात समाप्त होता है। एकादशी व्रत का पालन मुख्यतः 24 घण्टों के लिये किया जाता है, अर्थात स्थानीय सूर्योदय के समय से अगले सूर्योदय तक।

लेकिन यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण होगा कि भक्त एकादशी व्रत के एक दिन पूर्व सन्ध्या समय से सभी अनाजों का सेवन बन्द कर देते हैं ताकि अगले दिन सूर्योदय के समय व्रत प्रारम्भ करते समय पेट में अन्न का कोई अवशेष न रहें। अर्थात भगवान विष्णु के कुछ भक्त अपनी भक्ति के अनुसार एकादशी के एक दिन पहले ही सूर्यास्त से व्रत प्रारम्भ कर देते हैं।

3. कभी-कभी एकादशी के लिये लगातार दो दिनाँक सूचीबद्ध की जाती है। इसका क्या कारण है?

ऐसी स्थिति में जब एकादशी के लिये लगातार दो दिनाँक सूचीबद्ध की गयी हो, आप पहली दिनाँक को लेकर एक दिन के लिये एकादशी व्रत का पालन करें। जब व्रत का पालन एक दिन के लिये किया जाता है, तब पहली दिनाँक को ही प्राथमिकता दी जाती है। एकादशी का व्रत एक दिन के लिये रखना ही सबसे अधिक प्रचलित है, चाहें दिनाँक दो दिनों के लिये दी गयी है। लेकिन अगर आपमें सहन-शक्ति है तो आप दो दिन का व्रत भी रख सकते हैं।

4. पारण समय से क्या अभिप्राय है?

आप व्रत को स्थानीय समयानुसार सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक रखते हैं। लेकिन व्रत हमेशा अगले सूर्योदय पर नहीं तोड़ा जाता है। व्रत का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने हेतु, एकादशी का उपवास अगले दिन सूर्योदय के बाद एक उचित समय पर तोड़ा जाता है, जिससे व्रत का समय मध्याह्न तक या उससे भी अधिक बढ़ सकता है। अतः आपने यह देखा होगा कि, व्रत के पारण का समय (अर्थात व्रत को तोड़ने का समय) कभी-कभी अगले दिन मध्याह्न तक का भी दिया जाता है।

5. हरी वासर समाप्ति समय क्या है?

हरी वासर का समय एकादशी व्रत को तोड़ने के लिये निषिद्ध माना गया है। अगर आप व्रत को मध्याह्न तक करने की स्थिति में नहीं हैं या किसी भी तात्कालिक परिस्थिति में आप व्रत को हरी वासर के समाप्त होने के पश्चात् तोड़ सकते हैं। हालाँकि, व्रत को हरी वासर समाप्त होने के कुछ घण्टों के पश्चात् तोड़ना अधिक उचित होता है।

6. एकादशी का व्रत खण्डित होने पर क्या करें?

हिन्दु धर्म ग्रन्थों में एकादशी व्रत को परम पवित्र एवं फलदायी व्रत के रूप में वर्णित किया गया है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यदि किसी कारणवश व्रत भङ्ग जाता है तो उनकी उपासना करते हुये क्षमा-याचना करनी चाहिये। अपनी भूल का प्रायश्चित्त करते हुये भविष्य में उस भूल की पुनरावृति न करने का सङ्कल्प ग्रहण करें। प्रायश्चित्त हेतु निम्नलिखित कर्म किये जा सकते हैं।

एकादशी का व्रत भङ्ग अथवा खण्डित होने पर निम्नलिखित समाधान किये जा सकते हैं -

  • सर्वप्रथम पुनः सवस्त्र स्नान करें।
  • भगवान विष्णु की मूर्ति का दुग्ध, दही, मधु तथा शक्कर से युक्त पञ्चामृत से अभिषेक करें।
  • श्री हरि भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करें।
  • प्रभु से क्षमा-याचना करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें -

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे॥
ॐ श्री विष्णवे नमः। क्षमा याचनाम् समर्पयामि॥

  • गौ, ब्राह्मण और कन्याओं को भोजन करायें।
  • व्रत भङ्ग होने पर भगवान विष्णु के द्वादशाक्षर मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का यथाशक्ति तुलसी की माला से जप करें। कम से कम 11 माला अवश्य करें। इसके पश्चात आप एक माला का हवन भी कर सकते हैं।
  • भगवान विष्णु के स्तोत्रों का भक्तिपूर्वक पाठ करें।
  • भगवान विष्णु के मन्दिर में पुजारी जी को पीले वस्त्र, फल, मिष्ठान्न, धर्मग्रन्थ, चने की दाल, हल्दी, केसर आदि वस्तु दान करें।
  • यदि आपसे भूलवश से एकादशी का व्रत छूट जाता है तो आप प्रायश्चित के साथ ही निर्जला एकादशी का संकल्प ले सकते हैं। जिसे निर्जला अर्थात बिना जल और अन्न के रखने का निर्देश है।

व्रत तथा पूजन आदि कर्म पूर्णतः श्रद्धा एवं भक्ति भावना का विषय होते हैं। अतः व्रत में अज्ञानतावश कोई भूल हो भी जाती है तो अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास करते हुये उनसे क्षमा-याचना करें। आपको भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु व्रत में आलस्य एवं प्रमाद के प्रभाव में आकर मनमाना आचरण न करें। भगवान श्री हरि विष्णु समस्त प्राणियों की भावना से पूर्णतः अवगत रहते हैं तथा तदनुसार ही फल प्रदान करते हैं।

Kalash
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