नवरात्रि हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय उत्सवों में से एक है। प्रत्येक वर्ष में चार समय नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। नवरात्रि के समय भक्तों के मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उठते रहते हैं। जैसे कि, घटस्थापना कैसे करें? कन्यापूजन कैसे करें? किस दिन पूजन करें? कलश गिर गया तो क्या करें ? अखण्ड दीपक बुझ जाये तो क्या करें? आदि आदि। यहाँ नवरात्रि के समय पूछे जाने वाले ऐसे ही विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर प्रदान किये गये हैं, जिनके माध्यम से आप नवरात्रि के सम्बन्ध में होने वाली विभिन्न जिज्ञासाओं को शान्त कर सकते हैं।
उत्तर: नवरात्रि मूल रूप से ऋतु परिवर्तन के अवसर पर मनाया जाने वाला त्योहार है। नवरात्रि के दौरान प्रकृति एक बदलाव की भूमिका में होती है। इस दौरान शरीर में भी काफी बदलाव होते हैं जिससे त्रिदोषों के असन्तुलन के कारण विविध रोग उत्पन्न होते हैं। शीत से ग्रीष्म ऋतु तथा ग्रीष्म से शीत ऋतु के मध्य नवरात्रि एक सेतु का कार्य करती है। ऐसे समय में दुर्गा जी के जप, तप तथा उपवास से शारीरिक एवं मानसिक रूप से सुदृढ़ता आती है। शास्त्रों के अनुसार, ये नौ दिन सिद्धि और उपासना के लिये विशेष सार्थक होते हैं। रात्रि का सम्बन्ध निद्रा से होता है। वैदिक ग्रन्थों में रात्रि को जगत जननी आद्य शक्ति का भी पर्याय माना गया है। जो संसारी जीवों को मोहनिद्रा और योगियों को योगनिद्रा का अनुभव कराती है। नवरात्रि पर्व उन्हीं माँ जगदम्बा को समर्पित है जहाँ महानिशीथ काल में भी विशेष पूजन का विधान होता है। नवरात्रि पर्व में देवी का पूजन और अनुष्ठान कर साधक को त्रिविध तापों से मुक्ति मिलती है तथा उसके कष्टों एवं अज्ञान का अन्धकार देवी दूर करती हैं।
उत्तर: चैत्र मास और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। चैत्र मास में जो नवरात्रि आती है उसे वासन्तिक तथा आश्विन मास में जो नवरात्रि आती है उसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं। दोनों ही नवरात्रियों में शक्ति का विशेष अर्चन होता है किन्तु चैत्र नवरात्रि में शक्ति के साथ शक्तिधर भगवान नारायण की भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि भी कहा जाता है क्योंकि इस नवरात्रि का समापन राम नवमी पर्व से होता है।
उत्तर: नवरात्रि व्रत के समय आपको यथासम्भव उपवास, ध्यान एवं पूजन आदि करना चाहिये। यदि व्रत न कर सकें तो सात्विक आहार का सेवन, क्रोध, मोह तथा लोभादि वृत्तियों का त्याग करें। ब्रह्मचर्य का पालन एवं शारीरिक शुद्धि सभी के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इसके साथ ही कन्याओं का पूजन और उनको भोजन कराने से भी माँ भगवती प्रसन्न होती हैं।
उत्तर: यदि आपने नवरात्रि में किसी एक दिन अथवा पूरे नौ दिनों के उपवास का संकल्प लिया है। भूलवश या प्रमादवश आपका व्रत खण्डित हो जाये तो आपको तुरन्त देवी के मन्दिर जाकर उनसे क्षमा माँगनी चाहिये। आप क्षमा प्रार्थना स्तोत्र का 11 बार पाठ करके ब्राह्मणों को यथासम्भव दान-दक्षिणा देकर पुनः व्रत का संकल्प लें। यदि आप रोग या शारीरिक अक्षमता के कारण व्रत में त्रुटि कर बैठते हैं तो माँ भगवती से आप मन से क्षमायाचना कर लें तथा अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही व्रत का संकल्प ग्रहण करें।
उत्तर: जो लोग नवरात्रि में व्रत रखते हैं, उन्हें अन्न ग्रहण करने से बचना चाहिये। विशेष परिस्थितियों में नक्त या एकभुक्त व्रत का भी निर्णय ग्रन्थों में मिलता है। उपवास रखने वाले लोग मौसमी फलों के साथ साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, मोरधन का आटा और मेवों का सेवन कर सकते हैं। जो लोग व्रत नहीं भी हैं वे भी शुद्ध शाकाहारी आहार (जिसमें लहसुन, प्याज तथा सहजन का भी निषेध सम्मिलित है) ग्रहण करें तो उत्तम है।
उत्तर: नवरात्रि शक्ति-संचयन का पर्व है। इस दौरान पाशविक वृत्तियों से सभी को बचना चाहिये। गृहस्थ जीवन जी रहे लोगों को भी इन दिनों शारीरिक साहचर्य से बचना चाहिये। जो लोग नौ दिनों का उपवास रखते हैं, उन्हें इस दौरान क्षौर कर्म (बाल कटवाना, नाखून कटवाना) आदि से भी बचना चाहिये।
उत्तर: यदि किसी स्त्री जातक को नवरात्रि पर्व के दौरान मासिक धर्म शुरू हो जाये तो भी उसे उपवास नहीं छोड़ना चाहिये। लेकिन शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार ऐसी स्थिति में उन्हें देवविग्रह का पूजन करने और समीप जाने से बचना चाहिये। इस दौरान मानसिक नाम जप आदि किया जा सकता है। किन्तु यदि घटस्थापना आपने ही की है और पूजन संकल्प आपने ही लिया है तो ऐसी स्थिति में अपने प्रतिनिधि के रूप में अपने पुत्र, पति, सहोदर या ब्राह्मण द्वारा देवी का पूजन करवा सकते हैं।
यदि आप माँ भगवती की प्रसन्नता हेतु अखण्ड दीप प्रज्वलित कर रहे हैं, तो उसके पूर्व एक छोटे दीपक का 'कर्म दीप' के रूप में पूजन कर लें, इसके पश्चात ही अखण्ड दीप प्रज्वलित करें। यदि अखण्ड दीप किसी कारण बुझ जाये तो पहले कर्म दीप प्रज्वलित करें तदोपरान्त ही अखण्ड दीप प्रज्वलित करें। यदि आपकी भूल से अखण्ड दीप बुझा है तो देवी से क्षमा याचना कर लें।
नवरात्रि के उत्सव में नौ दिवसीय अखण्ड ज्योति प्रज्वलित की जाती है। अखण्ड ज्योति को साक्षात देवी माँ का ही रूप माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, नौ दिनों तक निरन्तर अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करने से देवी माँ प्रसन्न होती हैं। हिन्दु धर्म में सामान्यतः दीपक के बुझने को अशुभ माना जाता है, किन्तु यदि भूलवश ऐसा हो जाता है, तो आपको भयभीत नहीं होना चाहिये। सर्वप्रथम देवी माँ से पूजन में हुये किसी भी प्रकार के ज्ञात-अज्ञात अपराधों हेतु क्षमा-याचना करें। तत्पश्चात अखण्ड ज्योति के समक्ष एक अन्य छोटा दीपक प्रज्वलित कर लें। नवरात्रि के अखण्ड दीपक में नयी बाती लगायें तथा प्रज्वलित कर दें। जब छोटा दीपक स्वतः ही शान्त हो जाये तो उसे पूजन स्थल से हटा दें।
नवरात्रि की अखण्ड ज्योति के मध्य सवा हाथ लम्बा रक्षा सूत्र भी रखना चाहिये। दीपक के बुझने की दशा में रक्षा सूत्र से भी इसी पुनः प्रज्वलित किया जा सकता है। अन्यथा सर्वोत्तम तो यह है कि, ज्यों ही बाती बुझने लगे उसी समय उसमें नयी बाती लगा दें। इस प्रकार ज्योति खण्डित नहीं मानी जायेगी।
नवरात्रि के कौन से दिन पर किस रँग के वस्त्र धारण करने हैं, यह ज्ञात करने हेतु नवरात्रि के नौ रँग से सम्बन्धित पृष्ठ का अवलोकन करें।
धर्म ग्रन्थों के अनुसार सामर्थ्यवान होने पर नवरात्रि के सभी नौ तक निरन्तर कन्या पूजन करना चाहिये। ऐसा करने में समर्थ नहीं हैं तो सात, पाँच, तीन अथवा नवरात्रि के किसी एक दिन भी कन्या पूजन कर सकते हैं। सामान्यतः भक्तों द्वारा नवरात्रि की अष्टमी एवं नवमी तिथि पर कन्या पूजन किया जाता है। जो भक्त नवरात्रि का नौ दिवसीय उपवास रखते हैं उन्हें अष्टमी अथवा नवमी के दिन हवन करने के पश्चात कन्या पूजन करके उन्हें भोजन कराकर सामर्थ्यानुसार उपहार प्रदान करना चाहिये।
हिन्दु धर्मग्रन्थों में दो वर्षीय कन्या को कुमारी, तीन वर्षीय कन्या को त्रिमूर्ति (देवी दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती), चार वर्षीय कन्या को कल्याणी, पाँच वर्षीय कन्या को रोहिणी, छह वर्षीय कन्या को माँ कालिका, सात वर्षीय कन्या को देवी चण्डिका, आठ वर्षीय कन्या को शाम्भवी, नौ वर्षीय कन्या को देवी दुर्गा तथा दस वर्षीय कन्या को देवी सुभद्रा के रूप में वर्णित किया गया है।
अतः कन्या पूजन में दो वर्ष से नौ वर्ष की कन्याओं सम्मिलित किया जाना चाहिये। इन कन्याओं सहित इसी आयु वर्ग के बालक का भी पूजन एवं भोजन अवश्य कराना चाहिये। इन बालकों को देवी के गणों के रूप में मान्यता प्राप्त है तथा अनेक क्षेत्रों में इन्हें लाँगुरिया के नाम से भी जाना जाता है।
सर्वप्रथम तो योग्य कन्याओं को खोजने का पूर्ण प्रयास करना चाहिये। यदि नौ कन्या न मिलें तो देवी माँ को प्रसाद लगाकर जितनी कन्या मिल जायें उनका ही पूजन और यथारीति भोजन करवाना चाहिये। अपने परिवार की पुत्री एवं भतीजी आदि का भी पूजन कर सकते हैं। किसी विशेष परिस्थिति के कारण एक भी कन्या उपलब्ध न होने की अथवा कम कन्याओं के होने की दशा में उनके नाम से सूखे-मेवे, उपहार एवं दक्षिणा आदि निकाल कर रख लें तथा जब भी ऐसी कन्या मिलें उन्हें प्रदान कर आशीर्वाद ग्रहण कर लें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी द्वारा रचित सृष्टि में सर्वप्रथम वनस्पति के रूप में जौ की ही उत्पत्ति हुयी थी। अतः इसे आदि अन्न की संज्ञा भी दी जाती है। इसीलिये जौ को जीवन के विकास के प्रतीक के रूप में माँ भगवती के नवरात्रि अनुष्ठान में उगाया जाता है। माना जाता है की जौ की उपज के आधार पर ही नवरात्रि में की गयी साधना और पूजा के फल का अनुमान लगाया जाता है।
नवरात्रि उत्सव में जौ रोपित करने हेतु सर्वप्रथम एक मिट्टी का चौड़ा पात्र लें। तत्पश्चात उसमें मिट्टी की एक परत बिछाकर, जौ के दानों को बिखेरें। जौ के दानों के ऊपर पुनः थोड़ी-थोड़ी मिट्टी डाल दें, जिससे वह दाने ढक जायें। जो लोग जौ पात्र में ही कलश स्थापन करते हैं वे पात्र के किनारे-किनारे भी अन्न के दानों को रोप सकते हैं। अन्त में मिट्टी की एक अन्तिम परत बिछायें तथा आवश्यकतानुसार उसे जल से सींचते रहें। जौ उगाने हेतु वातावरण के अनुरूप जल डालते रहें तथा स्वच्छ स्थान की मिट्टी का ही प्रयोग करें।
सर्वप्रथम जौ अथवा ज्वारे लेने से पूर्व जिस पात्र में उन्हें उगाया है उसका पूजन करें। तत्पश्चात कुछ जौ को घर के पूजा स्थल में रखें, अन्य को जहाँ धन रखते हैं उस स्थान पर रख दें। परिवार के सभी सदस्य इसे देवी माँ के प्रसाद के रूप में अपने पास रख सकते हैं। शेष बचे हुये जौ को समीप के किसी पवित्र जल स्रोत, नदी आदि में प्रवाहित कर दें। नवरात्रि में उगाये गये जौ सुख-समृद्धि एवं देवी माँ की कृपा का प्रतीक होते हैं। उन्हें किसी निर्जन स्थान अथवा वृक्ष आदि के नीचे तथा अनुचित स्थान पर नहीं छोड़ना चाहिये।
नवरात्रि के अवसर पर देवी माँ की कृपा एवं प्रसन्नता हेतु हवन करने के लिये सरल दुर्गा होम विधि का अवलोकन करें।
नवरात्रि पर्व में शक्ति के साथ ही शक्तिधर नारायण की भी उपासना की जाती है। साधक दुर्गा सप्तशती, देवी भागवत और देवी मन्त्रों के साथ श्रीमद्भागवत, वाल्मीकी रामायण आदि अनुष्ठान नवरात्रि के दौरान करते हैं। चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि भी कहा जाता है। यदि आप नौ दिवसीय रामचरित मानस पाठ करना चाहते हैं तो इस पावन अवसर पर अवश्य करें।
नवरात्रि के प्रथम दिवस पर बालकाण्ड के मङ्गलाचरण से शुरू करते हुये 120 दोहों तक पाठ करें।
दूसरे दिन बालकाण्ड 120 से 239 दोहे तक, तीसरे दिन 239 से बालकाण्ड की पूर्णाहुति तक, चौथे दिन अयोध्याकाण्ड के मङ्गलाचरण से 116 दोहे तक, पाँचवे दिन 116 से 236 दोहे,
छठवें दिन अयोध्याकाण्ड के 236 से अरण्यकाण्ड के दोहा 29 (क) तक, सातवें दिन अरण्यकाण्ड के दोहा 29(ख) से लङ्काकाण्ड दोहा 12(क) तक, आठवें दिन लङ्काकाण्ड दोहा 12(ख) से उत्तरकाण्ड दोहा 10(ख) तक तथा नवमे दिन उत्तरकाण्ड दोहा 11 से उत्तरकाण्ड की पूर्णाहुति तक। इस क्रम से श्री रामचरित मानस का नवाह्न पारायण किया जाता है।
नवरात्रि उत्सव के समापन पर विधिपूर्वक माँ दुर्गा एवं कलश की पूजा-अर्चना करने के पश्चात मूर्ति एवं कलश का विसर्जन किया जाता है। नौ दिवसीय आराधना में हुयी त्रुटियों के लिये देवी माँ से क्षमा प्रार्थना स्तोत्र का गायन करते हुये क्षमा-याचना करें। तत्पश्चात देवी दुर्गा का स्मरण करते हुये कलश पर रखे हुये नारियल को उठा लें। कलश के जल को उसमें लगे आम एवं अशोक के पत्तों से सम्पूर्ण घर में छिड़क दें। शेष जल को तुलसी, पीपल आदि पवित्र वृक्षों की जड़ में डाल दें। कलश स्थापना में जो सिक्का अपने डाला था उसे अपने धन के स्थान पर रख लें। कई स्थलों में नारियल और कलश को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
पूजन सम्पूर्ण होने पर श्रद्धापूर्वक कलश को उठा लें एवं उसके जल को घर के प्रत्येक स्थान पर छिड़कें तथा अन्त में किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दें।
नवरात्रि का पूजन सम्पन्न होने के पश्चात कलश पर रखे नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर अपने पूजन स्थल पर रखना चाहिये। कुछ विद्वान नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर घर के मुख्य द्वार पर बाँधने का सुझाव भी देते हैं, आगामी नवरात्रि पर इस नारियल को नदी में प्रवाहित कर दूसरे नारियल को यथास्थान बाँध दिया जाता है। व्यापारी गण पूजा के नारियल को अपने कार्यालय आदि में पवित्र स्थान पर रख सकते हैं। कुछ स्थानों पर कन्यापूजन में ही कलश के नारियल को प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है। नारियल को घर की स्त्रियों (माँ, पुत्री, बहन) को भी दिया जा सकता है अथवा नदी में प्रवाहित किया जा सकता है।
मान्यताओं के अनुसार पूजन के समय कलश का गिरना अथवा खण्डित होने भविष्य में आने वाली विपदा का सूचक होता है। किन्तु भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि देवी माँ सदैव ही अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। कलश गिर जाने पर माता रानी से क्षमा-याचना करते हुये उसे पुनः यथास्थान स्थापित कर दें तथा देवी से समस्त प्रकार के संकटों को टालने की प्रार्थना करें।
नवरात्रि व्रत के दौरान सावधानियाँ -