गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गाय माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इस तरह गाय सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है। इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा का भी विधान है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल तैल-स्नान (तैल लगाकर स्नान) करना चाहिये।
गो, बछड़ों एवं बैलों की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। यदि घर में गाय हो, तो गाय के शरीर पर लाल एवं पीले रंग लगाना चाहिये। गाय के सींग पर तेल व गेरू लगाना चाहिये। फिर उसे घर में बने भोजन का प्रथम अंश खिलाना चाहिये। यदि घर में गाय न हो, तो घर में बने भोजन का अंश घर के बाहर गाय को खिलाना चाहिये।
इसके बाद गोवर्धन-पूजा (अन्न-कूट-पूजा) करनी चाहिये। इसके लिए जो लोग गोवर्धन पर्वत के पास नहीं हैं, वे गोबर से या भोज्यान्न से गोवर्धन बना लेते हैं। अन्न से बने गोवर्धन को ही अन्न-कूट कहते हैं। उसी को क्रमशः पाद्य-अर्घ्य-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य-आचमन-ताम्बूल-दक्षिणा समर्पित करते हुए पूजा करते हैं।
इस गोवर्धन-पूजा का अपना विशेष महत्त्व है। प्राकृतिक विपत्तियों से सावधान रहने की सूचना गोवर्धन की कथा से मिलती है। साथ ही गो-माता की महिमा और अन्न ही ब्रह्म है, इसका बोध होता है।
इस दिन दूध और उससे बनी वस्तुओं का उपयोग तो सभी बड़े चाव से करते हैं किन्तु गायों की दुर्दशा की ओर कितनों का ध्यान जाता है! अन्न का आहार कौन नहीं करता, किन्तु उसकी बर्बादी पर ध्यान देनेवाले कम ही लोग हैं। इसी अनाचार के फल-स्वरुप अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, भूकम्प जैसे प्राकृतिक संकटों से मानव-समाज को जूझना पड़ता है। गोवर्धन-पूजा या अन्न-कूट पर्व द्वारा इसीलिए उक्त विषयक समुचित चेतावनी दी जाती है।
इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। सन्ध्या को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है।
गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएँ उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिये जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बाँट देते हैं।
अन्नकूट में चन्द्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल होता है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या के समय गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है।
इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बन्द रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।