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देवी काली - दस महाविद्या में प्रथम देवी

DeepakDeepak

देवी काली

देवी काली

देवी काली, दस महाविद्या में से प्रथम देवी हैं तथा यह देवी दुर्गा का सर्वाधिक उग्र स्वरूप हैं। माँ काली को काल एवं परिवर्तन की देवी माना जाता है। सृष्टि-निर्माण के पूर्व से ही उनका काल अथवा समय पर आधिपत्य रहा है। देवी काली को भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में दर्शाया गया है। वह श्मशान में निवास करती हैं तथा शस्त्र के रूप में खड्ग एवं त्रिशूल धारण करती हैं।

Goddess Kali
देवी काली

काली उत्पत्ति

देवी माहात्म्य के अनुसार, रक्तबीज नामक दैत्य का संहार करने हेतु देवी दुर्गा ने काली रूप धारण किया था। रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि, भूमि पर जिस ओर भी उसकी रक्त की बूँदे गिरेंगी, उसी ओर उसका एक अन्य रूप जीवित हो उठेगा। भीषण युद्ध में समस्त प्रयत्नों के पश्चात् जब रक्तबीज को परास्त करना असम्भव प्रतीत होने लगा, तब देवी दुर्गा ने काली स्वरूप धारण किया तथा भूमि पर स्पर्श होने से पूर्व ही रक्तबीज के रक्त का पान करने लगीं। फलस्वरूप रक्तबीज का अन्त हो गया।

काली स्वरूप वर्णन

देवी काली को युद्धभूमि में खड़े, अपना एक पग चित अवस्था में लेटे भगवान शिव के वक्षस्थल पर रखे हुये दर्शाया जाता है। भगवान शिव के वक्षस्थल पर पग रखने के कारण देवी की जिह्वा को अचम्भित मुद्रा में बाहर की ओर निकला दर्शाया जाता है। वह श्याम वर्ण की हैं तथा उनके मुखमण्डल पर उग्र एवं क्रूर भाव हैं। उन्हें चतुर्भुज रूप में दर्शाया जाता है।

देवी अपने ऊपर के एक हाथ में रक्तरञ्जित खड्ग (कृपाण) लिये हुये हैं तथा उनके दूसरे हाथ में एक दैत्य का नरमुण्ड है। अन्य एक हाथ में खप्पर (लोहे का पात्र) है, जिसमें राक्षस के मुण्ड से टपकता रक्त एकत्रित होता है। अन्तिम हाथ वरद मुद्रा में रहता है। उन्हें नग्नावस्था में गले में नरमुण्ड माल (कटे हुये नरमुण्डों का हार) धारण किये हुये चित्रित किया जाता है। वह कमर में कटी हुयी नर-भुजाओं की करधनी धारण करती हैं।

देवी काली के विभिन्न स्वरूपों में उन्हें, ऊपरी एक हाथ को वरद मुद्रा तथा निचले एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुये चित्रित किया गया है।

काली साधना

शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु काली साधना की जाती है। काली साधना शत्रुओं को परास्त तथा उन्हें दुर्बल करने में सहायता करती है। रोग, दुष्टात्माओं, अशुभ ग्रहों, अकाल मृत्यु के भय आदि से मुक्ति तथा काव्य कलाओं में निपुणता हेतु भी काली साधना की जाती है।

काली मूल मन्त्र

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

अन्य काली मन्त्रों की सूचि

काली यन्त्र

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Kalash
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