वैदिक ज्योतिष शास्त्र में, मङ्गल, शनि, राहु, केतु और सूर्य को क्रूर ग्रह माना गया है। मङ्गल ग्रह को सबसे क्रूर ग्रह माना गया है क्योंकि यह जातक की जन्मकुण्डली को बुरी तरह प्रभावित करता है। यदि मङ्गल ग्रह किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में प्रतिकूल स्थिति में उपस्थित हो तो यह वैवाहिक जीवन के लिये अत्यन्त हानिकारक ग्रह होता है।
यदि मङ्गल ग्रह कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश घर में स्थित हो तो यह मङ्गल दोष का निर्माण करता है। मङ्गल दोष को न सिर्फ जातक की लग्न कुण्डली, अपितु चन्द्र कुण्डली और शुक्र कुण्डली में भी देखना अति आवश्यक होता है। जब तक तीनों कुण्डलियों में से कोई एक भी कुण्डली मङ्गल ग्रह से प्रभावित न हो, तब तक जातक गैर मांगलिक ही माना जायेगा। मङ्गल दोष को कुज दोष और भौम दोष भी कहा जाता है। जो जातक मङ्गल दोष से पीड़ित होते हैं उन्हें मांगलिक कहा जाता हैं।
उत्तर भारतीय ज्योतिषी मङ्गल दोष का मूल्यांकन करते समय कुण्डली के द्वितीय घर का विचार नहीं करते हैं, जबकि दक्षिण भारतीय ज्योतिषी प्रथम घर का विचार नहीं करते हैं। हालाँकि, इस बात पर सहमति है कि मङ्गल दोष के मूल्यांकन हेतु दोनों ही घरों का विचार करना आवश्यक है। अतः द्रिक पञ्चाङ्ग प्रथम और द्वितीय दोनों ही घरों का विचार मङ्गल दोष के मूल्यांकन के लिये करता है।
कई कुण्डलियाँ मङ्गल दोष से पीड़ित होती हैं पर कुण्डली में मङ्गल ग्रह के साथ अन्य ग्रहों की युक्ति एवं स्थिति के कारण मङ्गल दोष नष्ट हो जाता है।
यदि कुण्डली में मङ्गल दोष उपस्थित है तो उन सभी युक्तियों का विचार किया जाना चाहिये जिनके द्वारा कुण्डली में स्थित मङ्गल दोष नष्ट होता है। कई सारे ऐसे नियम हैं जिनसे मङ्गल दोष नष्ट होता है। द्रिक पञ्चाङ्ग मङ्गल दोष को नष्ट करने के लिये व्यापक रूप से स्वीकृत नियमों का ही पालन करता है।